कैले बजै मुरुली…. बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूँ मा



कैले बजै मुरूली… बैणा


भावार्थ : एक युवती जिसका पति युद्ध-भूमि में गया हुआ और उसका कई दिनों से कोई समाचार नहीं आया है जब वह पर्वतों की ऊंची चोटियों से आती हुई बांसुरी की धुन को सुनती है तो वह बैचेन हो जाती है। वह अपनी सहेली से कहती है कि यह ऊंची-ऊंची चोटियों में बंशी कौन बजा रहा है। इस धुन को सुन कर मेर विरह-दग्ध हृदय मानो फट सा जाता है। इसे सुन कर दिल में एक टीस सी उठती है कौन है ये पापी जिसने मेरा मन दुखा दिय
ा है। मेरे पति युद्ध-क्षेत्र में हैं और यह बंशी बजा रहा है। मेरे मायके की देवी भगवती तू मेरी आवाज़ सुन लेना और शीघ्र ही मेरे पति की कुशलता का समाचार मुझ तक पहुंचाना। मैं तेरे द्वारे आके खूब बड़ी पूजा करवाऊंगी। भूमि की रक्षा करने वाले भुमिया देव मेरी आवाज सुन लो और मेरी लाज रख लो। मेरे गले का मंगलसूत्र अब तुम्हारे ही हाथ में हैं। तुम युद्ध क्षेत्र में मेरे पति के साथ ही रहना और उनकी रक्षा करना ..हाँ।

कैले बजै मुरुली…. बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूँ मा
कैले बजै मुरुली… बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूँ मा
चिरी है कलेजी मेरी तू देख मन मा
कैले बजै मुरुली.. हो बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूँ मा
मुरुली क सोर सुणी हिया भरी ऐगो, को पापी ल मेरो बैणा मन दुखै हैछो
स्वामी परदेसा मेरा उ जरीं लाम मा
कैले बजै मुरुली…बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूँ मा
मेर मैत की भगवती तू दैणी हजैये,मेर मैत की भगवती तू दैणी हजैये
कुशल मंगल म्यारा स्वामी घर लैये,कुशल मंगल म्यारा स्वामी घर लैये
नंगरा निसाड़ा ल्यूँलो देबी मैं तेरा थान मा, नंगरा निसाड़ा ल्यूँलो देबी मैं तेरा थान मा
कैले बजै मुरुली हो बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूँ मा
भूमि का भूमिया देबा धर दिया लाज, भूमि का भूमिया देबा धर दिया लाज
पंचनामा देबो तुम सुणी लिया धात,पंचनामा देबो तुम सुणी लिया धात
गवै को चरेउ मेरी तुमरी छ हाथ,गवै की माला मेरी तुमरी छ हाथ
दगड़ रैया हो देबो स्वामी का साथ मा
कैले बजै मुरुली हो बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूँ मा
कैले बजै मुरुली हो बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूँ मा
कैले बजै मुरुली हो बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूँ मा
ऊंची ऊंची डान्यूँ मा,,ऊंची ऊंची डान्यूँ मा
ऊंची ऊंची डान्यूँ मा , ऊंची ऊंची डान्यूँ मा

Photo: Shayari गढवाली लोकगीत कुमाँऊनी लोकगीत कविता कोश हिन्दी कविताएँ

कैले बजै मुरूली… बैणा
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भावार्थ : एक युवती जिसका पति युद्ध-भूमि में गया हुआ और उसका कई दिनों से कोई समाचार नहीं आया है जब वह पर्वतों की ऊंची चोटियों से आती हुई बांसुरी की धुन को सुनती है तो वह बैचेन हो जाती है। वह अपनी सहेली से कहती है कि यह ऊंची-ऊंची चोटियों में बंशी कौन बजा रहा है। इस धुन को सुन कर मेर विरह-दग्ध हृदय मानो फट सा जाता है। इसे सुन कर दिल में एक टीस सी उठती है कौन है ये पापी जिसने मेरा मन दुखा दिया है। मेरे पति युद्ध-क्षेत्र में हैं और यह बंशी बजा रहा है। मेरे मायके की देवी भगवती तू मेरी आवाज़ सुन लेना और शीघ्र ही मेरे पति की कुशलता का समाचार मुझ तक पहुंचाना। मैं तेरे द्वारे आके खूब बड़ी पूजा करवाऊंगी। भूमि की रक्षा करने वाले भुमिया देव मेरी आवाज सुन लो और मेरी लाज रख लो। मेरे गले का मंगलसूत्र अब तुम्हारे ही हाथ में हैं। तुम युद्ध क्षेत्र में मेरे पति के साथ ही रहना और उनकी रक्षा करना ..हाँ।

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कैले बजै मुरुली… बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूँ मा
चिरी है कलेजी मेरी तू देख मन मा
कैले बजै मुरुली.. हो बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूँ मा
मुरुली क सोर सुणी हिया भरी ऐगो, को पापी ल मेरो बैणा मन दुखै हैछो
स्वामी परदेसा मेरा उ जरीं लाम मा
कैले बजै मुरुली…बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूँ मा
मेर मैत की भगवती तू दैणी हजैये,मेर मैत की भगवती तू दैणी हजैये
कुशल मंगल म्यारा स्वामी घर लैये,कुशल मंगल म्यारा स्वामी घर लैये
नंगरा निसाड़ा ल्यूँलो देबी मैं तेरा थान मा, नंगरा निसाड़ा ल्यूँलो देबी मैं तेरा थान मा
कैले बजै मुरुली हो बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूँ मा
भूमि का भूमिया देबा धर दिया लाज, भूमि का भूमिया देबा धर दिया लाज
पंचनामा देबो तुम सुणी लिया धात,पंचनामा देबो तुम सुणी लिया धात
गवै को चरेउ मेरी तुमरी छ हाथ,गवै की माला मेरी तुमरी छ हाथ
दगड़ रैया हो देबो स्वामी का साथ मा
कैले बजै मुरुली हो बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूँ मा
कैले बजै मुरुली हो बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूँ मा
कैले बजै मुरुली हो बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूँ मा
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