जो लिखी छ्या





जो लिखी छ्या

बिधातन जो लिखी छ्या 
वो हमुल इन आंख्युं देख्याली
अपरू अपरु मा ही लग्युं 
गढ़ वैल इन हाथों न धोयाली
बिधातन जो लिखी छ्या

कर्म त अपरा ही छा
भग्या नी बस रेघा खिंचयाली
जो अबै तक उमड़यूँ छा बादल
वैल जीयु भोरीक पोडयाली
बिधातन जो लिखी छ्या...

अपरा ना जाण अंजाणा भी
कैथे भी ना वैल पैछाणाली
कालू झोल सी ये वो ,छे वो
बस माटी मौल वैल कैर्याली
बिधातन जो लिखी छ्या....


बस वो दिख्या जाता दूर तक
वो वैका रेघा खिंच्या खिंच्या
आंसूं का वो धार मेरा छुटयाँ
जो इन आंख्युं से छा पड़यां
बिधातन जो लिखी छ्या.


बिधातन जो लिखी छ्या
वो हमुल इन आंख्युं देख्याली
अपरू अपरु मा ही लग्युं गढ़
वैल इन हाथों न धोयाली
बिधातन जो लिखी छ्या..


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हे मेरी आंख्यूं का रतन बाला स्ये जादी, बाला स्ये जादी

लायुं छो भाग छांटी की देयुं छो वेकु अन्जोल्युन न

जय बद्री केदारनाथ गंगोत्री जय जय जमुनोत्री जय जय