कु होली ऊँची डांडीयूँ मा बीरा घस्यरी का भेस मा





ये बहुत ही पुराना गाना है वैसे ये गाना जीत सिंग नेगी जी का है पर इस गाने को दुबारा नेगी जी ने अपना स्वर दिया है 
और ये गाना उन भाइयों को समर्पित है जो अपना घर गों छोड़ के पैसे कमाने के खातिर यहाँ परदेश आते हैं और फिर उनको अपने घर गाँव की जो याद आती है उसी का जिक्र इस गाने में किया है उन सभी भाइयों के दर्द को नेगी जी ने गीत का रूप दिया है 


कु होली ऊँची डांडीयूँ मा बीरा घस्यरी का भेस मा
खुद मा तेरी सड़कयूँ पर में रोनू छौं परदेश मा

ऊँची निसी डांडी गाड गद्न्या हिसर अर किन्गोड़ ला
छुल बुल बन ग्ये होली डाली ग्वेर दगडया तोडला
घनी कुनाल्युन का बिच अर बांज की डाली का छैल मा
बेटी ब्वारी बैठी होली बैख होला याद मा
लटुली उडनी होली ठंडी हवा न डांडा की
पर मी मोरनू छौं घाम अर तीस न ये देश मा

खुद मा तेरी सड़कयूँ पर मी रोनू छौं परदेश मा
कु होली ऊँची डांडीयूँ मा बीरा घस्यरी का भेस मा
खुद मा तेरी सड़कयूँ पर में रोनू छौं परदेश मा
रोनू छौं परदेश मा

गौडी भैंसी म्वा म्वा करदी रमदी लैंदी जब आली
वुंकी गुसैन भांडी लेकी गौडी भैंसी पिजाली
श्रौन भादौ का मैना लोग धाणी सब जाला
वुनका जनाना स्वामी कु अपड़ा स्यारों रोटी लिजाला
मूला की भुज्जी प्याज कु साग दै की कटोरी भोरी की
कोदा की अफुकू स्वामी कु ग्यून की रोटी खलल चोरी की
पर मी भुखू सी छौं अपड़ा स्वाद बिना ये देश मा

खुद मा तेरी सड़कयूँ पर मी रोनू छौं परदेश मा
कु होली ऊँची डांडीयूँ मा बीरा घस्यरी का भेस मा
खुद मा तेरी सड़कयूँ पर में रोनू छौं परदेश मा
रोनू छौं परदेश मा

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