मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु

मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु

पहाड़ वैसे तो हर मौसम में अपनी प्राकृतिक सुन्दरता से लोगों का मन मोह लेते हैं लेकिन वसंत ऋतु में उनकी सुन्दरता देखने लायक होती है। इसीलिये नरेन्द्र सिंह नेगी उत्तराखंड जाने वालों को सलाह देते हैं कि “मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि” अर्थात अगर मेरे पहाड़ी देश में जाना तो बसन्त ऋतु में ही जाना और फिर वह इसके पीछे के कारणों को भी बताते हैं। लगता है यह गीत 
हर पहाड़ी व्यक्ति की भावना का गीत है क्योंकि यह सब बातें पूरे उत्तराखंड पर ही लागू होती हैं। गीत की अंतिम पंक्तियां तो जैसे दिल चीर जाती हैं। “वखि फुन्डे होलु खत्युं मेरु भि बचपन, उकिरी सकली त उकिरी की लेई ” अर्थात “वहीं कहीं मिलेगा तुम्हें मेरा भी बचपन, अगर उठा कर ला पाओगे तो संभाल कर उसे भी ले आना” । तो सुनिये यह गीत जिसे एलबम “चली भै मोटर चली” से लिया गया है और इसका 
गीत का भावार्थ :
अगर मेरे पहाड़ी देश में जाना तो बसन्त ऋतु में ही जाना
जब हर जगह बुरांश के फूल खिलकर
जंगलों में आग लगे होने का आभास देते हैं (अपने सुन्दर लाल रंग के कारण)
पंखों वाले सुन्दर फ्यौंलि के फूल पीले रंग में रंगे होते हैं
लइया, पैयां, ग्वीराल (कचनार) के फूलों से सजी हुई धरती देख कर आना..
अगर मेरे पहाड़ी देश में जाना तो बसन्त ऋतु में ही जाना
रंगीले फागुन में हौल्यारों कि टोली, पहाड़ों को रंग रही होगी
कोई किसी के रंग में रंगा होगा तो कोई मन ही मन किसी का हो चुका होगा
तरह-तरह के रंगों की बाढ़ और प्रेम के रंगों में भीग कर ही आना
अगर मेरे पहाड़ी देश में जाना तो बसन्त ऋतु में ही जाना
तुम्हें मिलेंगे देहरी में खिलते फूल (फूलदेई), रात-रात भर चलने वाले गिदारों (गायकों) के गीत
चैत के बोल, ओजियों (ढोल बजाने वालों) के ढोल, यही तो है मेरे मुलुक (देश) की रीत
रसिया मर्दों के ठुमके और सुन्दर बांद (महिलाओं) के लसके-ठसके देखकर आना
अगर मेरे पहाड़ी देश में जाना तो बसन्त ऋतु में ही जाना
चैत की इस बहार के बीच तुम्हें सुनाई देंगे पहाड़ों में गूंजते घसियारिनों के मधुर गीत
खेल खेलते मस्ती में डूबे हुए लड़के मिलेंगे और मिलेंगी गले में टंगी हुई घन्टियां बजाती गायें
वहीं कहीं मिलेगा तुम्हें मेरा भी बचपन, अगर ऊठा कर ला पाओगे तो संभाल कर उसे भी ले आना
अगर मेरे पहाड़ी देश में जाना तो बसन्त ऋतु में ही जाना

मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु…

मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि,बसन्त रितु मा जैयि
मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि,बसन्त रितु मा जैयि
हैरा बण मा बुराँस का फूल, जब बण आग लगाणा होला..
भीटा पाखों थैं फ्योलिं का फूल, पिन्ग्ला रंग मा रंग्याणा होला ..
लाइयां पैयां ग्वीराल फूलु ना, लाइयां पैयां ग्वीराल फूलु ना, होलि धरती सजि देखि ऐइ …
बसन्त रितु म जैयि…
मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि,बसन्त रितु मा जैयि
रंगीला फागुन होल्येरों कि टोलि, डांडि कांठियों रंग्यणि होलि…
कैक रंग म रंग्युं होलु क्वियि, क्वि मनि-मन म रंग्श्याणि होलि..
किर्मिचि केसरि रंग कि बार, किर्मिचि केसरि रंग कि बार, प्रेम क रंगों मा भीजि ऐइ…
बसन्त रितु म जैयि….
मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि,बसन्त रितु मा जैयि
बिन्सिरि देल्युं मा खिल्दा फूल, राति गों-गों गितेरुं का गीत…
चैता का बोल, ओजियों का ढोल, मेरा रोंतेला मुलुके कि रीत…
मस्त बिगिरैला बैखुं का ठुम्का, मस्त बिगिरैला बैखुं का ठुम्का, बांदूं का लस्सका देखि ऐइ….
बसन्त रितु म जैयि…
मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि,बसन्त रितु मा जैयि
सैणा दमला अर चैतै बयार, घस्यरि गीतों मा गुंज्दि डांडि…
खेल्युं मा रंग-मत ग्वेर छोरा, अट्क्दा गोर घम्डियंदि घंडि..
वखि फुन्डे होलु खत्युं मेरु भि बचपन, वखि फुन्डे होलु खत्युं मेरु भि बचपन, उकिरी सकली त उकिरी की लेई …
बसन्त रितु म जैयि…
मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि,बसन्त रितु मा जैयि
बसन्त रितु मा जैयि, बसन्त रितु मा जैयि, बसन्त रितु मा जैयि
Photo: Shayari गढवाली लोकगीत कुमाँऊनी लोकगीत कविता कोश हिन्दी कविताएँ
मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु…
पहाड़ वैसे तो हर मौसम में अपनी प्राकृतिक सुन्दरता से लोगों का मन मोह लेते हैं लेकिन वसंत ऋतु में उनकी सुन्दरता देखने लायक होती है। इसीलिये नरेन्द्र सिंह नेगी उत्तराखंड जाने वालों को सलाह देते हैं कि “मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि” अर्थात अगर मेरे पहाड़ी देश में जाना तो बसन्त ऋतु में ही जाना और फिर वह इसके पीछे के कारणों को भी बताते हैं। लगता है यह गीत हर पहाड़ी व्यक्ति की भावना का गीत है क्योंकि यह सब बातें पूरे उत्तराखंड पर ही लागू होती हैं। गीत की अंतिम पंक्तियां तो जैसे दिल चीर जाती हैं। “वखि फुन्डे होलु खत्युं मेरु भि बचपन, उकिरी सकली त उकिरी की लेई ” अर्थात “वहीं कहीं मिलेगा तुम्हें मेरा भी बचपन, अगर उठा कर ला पाओगे तो संभाल कर उसे भी ले आना” । तो सुनिये यह गीत जिसे एलबम “चली भै मोटर चली” से लिया गया है और इसका 
गीत का भावार्थ :
अगर मेरे पहाड़ी देश में जाना तो बसन्त ऋतु में ही जाना
जब हर जगह बुरांश के फूल  खिलकर
जंगलों में आग लगे होने का आभास देते हैं (अपने सुन्दर लाल रंग के कारण)
पंखों वाले सुन्दर फ्यौंलि के फूल पीले रंग में रंगे होते हैं
लइया, पैयां, ग्वीराल (कचनार) के फूलों से सजी हुई धरती देख कर आना..
अगर मेरे पहाड़ी देश में जाना तो बसन्त ऋतु में ही जाना
रंगीले फागुन में हौल्यारों कि टोली, पहाड़ों को रंग रही होगी
कोई किसी के रंग में रंगा होगा तो कोई मन ही मन किसी का हो चुका होगा
तरह-तरह के रंगों की बाढ़ और प्रेम के रंगों में भीग कर ही आना
अगर मेरे पहाड़ी देश में जाना तो बसन्त ऋतु में ही जाना
तुम्हें मिलेंगे देहरी में खिलते फूल (फूलदेई), रात-रात भर चलने वाले गिदारों (गायकों) के गीत
चैत के बोल, ओजियों (ढोल बजाने वालों) के ढोल, यही तो है मेरे मुलुक (देश) की रीत
रसिया मर्दों के ठुमके और सुन्दर बांद (महिलाओं) के लसके-ठसके देखकर आना
अगर मेरे पहाड़ी देश में जाना तो बसन्त ऋतु में ही जाना
चैत की इस बहार के बीच तुम्हें सुनाई देंगे पहाड़ों में गूंजते घसियारिनों के मधुर गीत
खेल खेलते मस्ती में डूबे हुए लड़के मिलेंगे और मिलेंगी गले में टंगी हुई घन्टियां बजाती गायें
वहीं कहीं मिलेगा तुम्हें मेरा भी बचपन, अगर ऊठा कर ला पाओगे तो संभाल कर उसे भी ले आना
अगर मेरे पहाड़ी देश में जाना तो बसन्त ऋतु में ही जाना

मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु…

मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि,बसन्त रितु मा जैयि
मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि,बसन्त रितु मा जैयि
हैरा बण मा बुराँस का फूल, जब बण आग लगाणा होला..
भीटा पाखों थैं फ्योलिं का फूल, पिन्ग्ला रंग मा रंग्याणा होला ..
लाइयां पैयां ग्वीराल फूलु ना, लाइयां पैयां ग्वीराल फूलु ना, होलि धरती सजि देखि ऐइ …
बसन्त रितु म जैयि…
मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि,बसन्त रितु मा जैयि
रंगीला फागुन होल्येरों कि टोलि, डांडि कांठियों रंग्यणि होलि…
कैक रंग म रंग्युं होलु क्वियि, क्वि मनि-मन म रंग्श्याणि होलि..
किर्मिचि केसरि रंग कि बार, किर्मिचि केसरि रंग कि बार, प्रेम क रंगों मा भीजि ऐइ…
बसन्त रितु म जैयि….
मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि,बसन्त रितु मा जैयि
बिन्सिरि देल्युं मा खिल्दा फूल, राति गों-गों गितेरुं का गीत…
चैता का बोल, ओजियों का ढोल, मेरा रोंतेला मुलुके कि रीत…
मस्त बिगिरैला बैखुं का ठुम्का, मस्त बिगिरैला बैखुं का ठुम्का, बांदूं का लस्सका देखि ऐइ….
बसन्त रितु म जैयि…
मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि,बसन्त रितु मा जैयि
सैणा दमला अर चैतै बयार, घस्यरि गीतों मा गुंज्दि डांडि…
खेल्युं मा रंग-मत ग्वेर छोरा, अट्क्दा गोर घम्डियंदि घंडि..
वखि फुन्डे होलु खत्युं मेरु भि बचपन, वखि फुन्डे होलु खत्युं मेरु भि बचपन, उकिरी सकली त उकिरी की लेई …
बसन्त रितु म जैयि…
मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि,बसन्त रितु मा जैयि
बसन्त रितु मा जैयि, बसन्त रितु मा जैयि, बसन्त रितु मा जैयि

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हे मेरी आंख्यूं का रतन बाला स्ये जादी, बाला स्ये जादी

लायुं छो भाग छांटी की देयुं छो वेकु अन्जोल्युन न

जय बद्री केदारनाथ गंगोत्री जय जय जमुनोत्री जय जय