देर-सबेर (एक नाटक)
देर-सबेर (एक नाटक)
देर-सबेर
चार लोग [सिपै : सुबेदार राम सिंह, बामण: पं जगदम्बा उर्फ जग्गू दा,हल्या: मनोहर उर्फ मन्नू, बुढ्या: ब्वाढा]
सिपै: [गाना गै की प्रवेश - मेरी डाडीयू कांठियू का मुल्क जैलू.... ] अरेकख गीन सब लोग!! दिखेणा नी छन। क्या बात अकाल पोडी गै या हैजाखे गे सबो ते। चार साल बाद आनू छौ अर कथूक बदिल गै म्यार गांव्. नात पुंगडी हसणा छन न डाला बूटा बुलाणा छन्। क्या ह्वे ह्वालो कै की बुरीनज़र लगी होल।
(धै लगाण बैठी--हे काका हे बवाढा हे मन्नू , जग्गू अरे मी आ गंयो कखछवां तुम लोग्।)
[मन्नू क आणू ]
मन्नु: अबे राम सिंह केबर अये भै तू। खूब सेहत बणी तेरी। किले छेबरराणु तू
सिपै; मन्नू द्ग्डया कन छै तू.हां भै फौजी आदिम छौ सेहत त चैणी ल्गीनिथर कन मा देश क ऱक्षा करलु। यू बता क्या ह्वे क्वी नी दिखेनू च कखछन सब पलट्न हमर गांव की?
मन्नु: अरे पुछी न तू स्बलोग बिसरी गीन, जू उंद जांदू फिर घर क बाटू नीदिखदू अब गीण - गाणिक 4 परिवार रेगिन।
[जग्गू का आण - मंत्रो क उच्चारण क दगडी और राम सिहं ते गला मिलीक ]
जग्गू: क्या बात कब पोंछी तू भुल्ला कन च त्यार परिवार ?
सिपै: बस दादा गुजारु चनु चा एक छुट्टु च एक तै अभी स्कूल मा दाखिलकरे। इख हूंदा त मी भी टैम से आनु रेंद अर खर्चा पानी भी ह्वे जांद अरबांझ पुड्या पंगडा भी सांस लीना रेंद। डाडीयू कांठियू की खुद भी बिसरेज्यादिं। क्या कन वा भी नी आण चांदि,वा भी रम गै उख
जग्गू: अरे दगड्यो, पिछला साल मी दिल्ली गै छ्याई अरे प्रिथु भैजी कनोन मिली मितै पैली त वे न पछाणी नी च।फिर याद दिले मिन। अबे क्यालाड साब बण्यू उख। मी गढव्ली मा बुनु अर उ हिन्दी मा अर अंग्रेजी मा।पता नी जब वू लोग इख छाई तैबर त ठैट बुल्दु छ्याई
मनु: अरे सब भैर ज्याकि सब अंग्रेज़ बणी गीन. डड्रियाल जी क वकविता याद आणि " घर भटैक अयां कि गढवली भुल्याक है ज़रा ज़राविदेश की अधकची फुक्याक है"
[सिपै व जग्गु सभी हस्न बैठिगीन]
सिपै: अरे इन च सभी क दगडी या बात नी च. आजकल का जमाना कदगडी चलना कुण या अच्छी खबर च कि अब हमर बेटा-बेटी, भुला-भुलीसब अगनै बढिगीन. पर कई लोग छन जूं का प्रेम अप्णु उत्तराचल कदग्डी उथ्कु ही चा अर नो भी कमाणा छन. बस ज़रा हमर राज्य अर गावोमा भी सुधार ह्वे जाओ त फिर लोग ज़रा कम जाला। शायद उख भटै इख भी आवन लोग अब।
जग्गू: हां ज़रा शिक्षा मा सुधार चेनू लग्यू च
मनु: खेती बाडी अर स्वास्थ्य क भी ध्यान करी लीदं त अच्छू हूंद .गांवो मा अभी भी सुविधा नी छन।
सिपै: अरे अब हमर लोग समझेण बैठि गिन, अब त उत्तराखंड बणी गै तलुखो क उम्मीद भी और बढि गैन. अब उम्मीद च कि पलायन पर थोडा विराम लगालू।
[खंसदू खसंदू ब्वाढा जी क आण ....]
ब्वाढा : अरे को चा आवाज त सुणनू छौ पर यू फुटायां आख्यू नी दिखेदू।अब कुछ इन लगणू भीड ह्वेग्या इखम
[ सब खुटा छुण बैठीन ]
सैपे: ब्वाढा मी छौ हवल्दार राम सिंह - पान सिंह का नोनू ' अर भीड नी चबस मी ,ज्ग्गू अर मनु बस
ब्वाढा: अरे पाना क नोनू कख भटैक भूलि रस्ता तू अपर गौ क. इख तअब क्वी भी नी दिखेंदु। अर भीड....अर तीन आदिम भीड लगदी अब.पैलीत क्वी आंद् नी च अर आला भी त हम तै देखि मुख फरक्या दिंदीन. क्वीध्वार् भी नी आंदू जांद।
जगु: अरे बाढा हम त आणा ही रंद्वा तेरी खोज खबरी लीना कु कि अभीबच्यु च ब्वाढा की ना।
मनु : चिंता नी केरी बाढा त्वे तै कंधा कुन हम द्वी अर द्वी हेक का गओभटिक ल्योला किलै छै फिकर कर्नी.
सिपै: अरे किले बुना छवा तन, ब्वाढा त म्यार नोनो क ब्याह कर्याकन हीजालू. किले ब्वाडा?
.... अर तुम लोग सुणाओ क्या हाल छन? क्या कना रंदवा तुम लोग आजकल..टैम पास होणु च कि कामकाज भी?
मनु: अरे अब त जनी तनी कै कि अप्रु हल लगै दींदू. गुजर बसर हुणु च.अर बाकि राम क मर्जी। अबै तेरी ना.... भगवान राम की!!! पैली त 5-6मौ क हल लगाणु कू मिल जाम्दो छयु अब के कुण लागाण.
ज्ग्गू: हां अब जज्मान भी क्वी नी च इख या अगल बगल गांव मा. पूजापाति त बस नामकुन च. स्कूल मा बच्चा भी न छन अर मास्टर भी नीछन .त कैबर मी चल जांदू पढाण कुण द्वी चार बच्चो तै. थोडा बहुत मनलग जांद निथर कुछ नी नच्यू ये गांव मा.
ब्वाडा: अरे पैली क्या हर्यू भर्यू छ्या. लोड बाल कु शोर्गुल मा आनन्द आंदूछ्याओ,अच्छु बुरु, ब्याह शादी अर काम काज मा एक दुसरा का सुख दुखमा सब दगडी छयाई
ब्वारी बेटी सब अगने पिछने सेवा मा हाजिर, नोना नाती पोता सब इज्जतदीदा छ्याई/ खूब रोनक रेंदी छै अर अब न आप्णु ना बिरणु हर्चि गीनसब. काश म्यार जाण से पैली एक बार म्यार गांव क वा पुरनी छवि देखिसक्दू आंख्यू ना भी त महसूस कैरी लींद...
सिपै: बाढा त्यार मन क दुख मी समझनू छौ. मन त म्यार भी करदू अरबस कमाण अर परिवार क खातिर च्ल गै छौ मी लेकिन अब मीन सोचिआलि कि मी अगली साल बच्चो तै इख ल्योल अर फिर द्वी साल माम्यार रिटायर्मेट भी च त मी अप्रु जन्म्भूमि मा वापिस ओलू फिर अपरु गौते उनी बणान क कोशिश कर्ल्यु आप लुखो क दगड मिलीक यू डाडीकांठियू तै फिर से रोतुली सुहाण बणाक क कोशिश करला।
जगु: अब मीतै एक जजमान अर द्वी विद्दर्थी ओर मिल जाल हा हा हा
मनु: अब त त्यार हल भी मी लगोल... अर त्यार गोर बछरा भी मी हीचरोलु . क्या बुलदि
सिपै: हां हम सब मिलिक अप्रो गों की हंसी-खुशी वापिस लोला अर अगनेबढौला
ब्वाढा; कथुक दिनु बाद या खुसि मिल. चलो प्रान भलि जाला पर तुमलुखो कि बात सुणि क मीतै खुसि च कि अब सैद बाकि लोग भी अप्र गांवपहाड क प्रति केवल लगाव ही नी राखल बलिक ये तै हर भरु बणान माभी अप्रि भूमिका निभाल.
( सब मिलीकन : हम अपरी भरसक प्रयत्न करला कि अपणू उत्तरखंडका लुखो क हर प्रकार से सह्योग करला जै भी रुप मा ह्वे साकू। चाहे इख रोला या उख और उन सभी बूढि आंखयू का सपनो ते नयू आयाम दयूला।
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