इखमां छुईं, उखमां छुईं, जखमां देख, तखमां छुई

इखमां छुईं, उखमां छुईं, जखमां देख, तखमां छुईं


मानव जीवन में कई तरह की परेशानियां होती हैं लेकिन इस गाने के नायक की परेशानी नारी स्वभाव से जुड़ी एक सामान्य आदत है और वह आदत बकबक बोलने की… इस व्यंगात्मक गाने में एक ऐसे आदमी का चित्रण किया है जो अपनी पत्नी की छुंयाल (बातूनी) आदत से त्रस्त है। उस आदमी का दर्द फूट-फूट कर सामने आ रहा है .. गाना सुनकर समझ में आता है कि वास्तव में उसकी पत्नी की बतकही की आदत वाचालता की हद तक जा पहुंची है।

भावार्थ : 

पत्नी की बातूनी आदतों से परेशान पति अपनी व्यथा कुछ इस तरह से सुना रहा है- मेरी पत्नी जहां देखो वहीं उठते-बैठते गप्प मारना शुरू कर देती है। गप्प भी ऐसी कि इसे दिन-रात की सुध नहीं रहती। वह तल्ला खोला (गांव के निचले हिस्से) में किसी के घर ऊखल कूटने के लिये जाती है, तो बात शुरु करने पर रुकने का नाम नहीं लेती। मल्ला खोला (गांव के ऊपरी हिस्से) के घर में हाथ वाली चक्की से पिसाई करने जाती हैं तो बातों में रात-दिन की सुध खो बैठती है अन्तत: रात को वहीं रुक जाती है। मैं तो हैरान हूं कि इस दो अंगुल के मुंह में डेढ हाथ की जबान कैसे समा गई है? सब्जी और रोटी बनाते-बनाते छुईं (गप्प) लगाने में इतनी मशगूल हो जाती है कि चूल्हे पर रखी रोटी-सब्जी जल जाती है लेकिन इन्हें पता भी नहीं चलता। अब इसके हाथ का बना खाना जिस आदमी को खाने को मिल गया वो तो कोई किस्मत वाला ही होगा। महिलाओं की मण्डली बैठा कर जंगल और पानी भरने की जगह पर ऐसे सभा जमा देती है लगता है जैसे कोई कचहरी या पंचायत लग गई हो। पूरे दिन भर बात करने पर भी इसका मन नहीं भरता, इसलिये सोते में भी बोलती रहती है, अब क्या बताऊं यारों मैं तो बरसों से उनींदा ही हूं। एक बार अगर इसने बात शुरु कर दी तो फिर बात से बात निकलती जाती है। इसकी मशीन की तरह चलने वाली जबान के लिये मैं क्या करूं मुझे समझ नहीं आ रहा है। दांत में तेज दर्द होने पर लगता है कि अब ये कुछ शान्त रहेगी, उस दर्द को भी यह सहन कर लेती है, मगर एक-दो घड़ी चुप रहना इसके बस की बात नहीं है। इसकी इसी आदत के कारण मेरे सिर में दर्द रहने लगा है। मैं तो ये सोच-सोच कर हैरान हूँ कि भगवान ने यह कैसा अजीब नमूना बना कर धरती पर मेरे पास भेज दिया?


इखमां छुईं, उखमां छुईं, जखमां देख, तखमां छुईं
इखमां छुईं, उखमां छुईं, उठदा बैठदा छुईं-छुईं
ईखमा, उखमा, जखमां, तखमां पूछ न आब क्या बौल्न कि कख मां
इखमां छुईं, उखमां छुईं, जखमां देख, तखमां छुईं
सुध-बुध नि रैन्द दिन रात की..
कन छुयाल ह्वै तु वे बकि बात कि, बकि बात कि
कन छुयाल ह्वै तु बकि बात कि….बकि बात कि
तैल्या खोला कुटणु जांद, तैल्या खोला..तैल्या खोला कुटणु जांद
उरख्यांलु मां छुईं लगांद मेरि गांजरि रुकदि नी..
मैल्या खोला पिसनु जांद, मैल्या खोला. मैल्या खोला पिसणू जांद
रात बासा रैकि आंद, मेरि जांदरि थकदि नी…
द्वी आंगौलि कि गिजि….गिजि…और जीब डेढ हाथ कि…
कन छुयाल ह्वै तु बकि बात कि, बकि बात कि
कन छुयाल ह्वै तु बकि बात कि, बकि बात कि
भुजि बणांद छुईं लगांद..भुजि बणांद…, भुजि बणांद छुईं लगांद,
भुजि चुलै में फुकि जांद , चुलि जुगर्तौं ग्वदिड़ि भिण्डि..
रोटि पकांद छुईं लगांद..रोटि पकांद रोटि पकांद छुईं लगांद..
रोटि तवै में बिसरि जांद, मेरि सगौर्या आब खा भिण्डि..
कौ भग्यान खालो.. खालो.. कौ भग्यान खालो तेरा हाथ कि..
कन छुयाल ह्वै तु बकि बात कि, बकि बात कि
कन छुयाल ह्वै तु बकि बात कि, बकि बात कि
बणौं मां कचैरि लगांद, बणौं मां…..बणौं मां कचैरि लगांद
पन्दरौ मां पंचैत बैठांद , हे मेरि छुयूं भुखि रै गयूं
बिज्यां मां त धौ नि खान्द.. बिज्यां मां…. बिज्यां मां त धौ नि खान्द
निन्द मां बि बच्याणि रांद.. बरसूं बटि उनिन्दि छयूं,
सैनि खानि हर्चि.. हर्चि अरे हर्चि दिन रात कि
कन छुयाल ह्वै तु बकि बात कि, बकि बात कि
कन छुयाल ह्वै तु बकि बात कि, बकि बात कि
छुयूं बटि छुईं निकल्द, छुयूं बटि.. छुयूं बटि छुईं निकल्द
गिचि जन मशीन चल्द, हे मेरि गिचि क्या करूं क्या करूं?
दाड़ पिड़ा जि सै लैन्द, दाड़ पिड़ा.. दाड़ पिड़ा जि सै लैन्द
पर गड़ि एक चुप नि रैन्द, हे मेरि बौई मुण्डरु मुण्डरु
क्या चीज रचि छ.. रचि छ..रचि छ वै विधाता कि
कन छुयाल ह्वै तु बकि बात कि, बकि बात कि
कन छुयाल ह्वै तु बकि बात कि, बकि बात कि 
ईखमा, उखमा, जखमां, तखमां पूछ न आब क्या बौल्न कि कख मां
इखमां छुईं, उखमां छुईं, जखमां देख, तखमां छुईं
सुध-बुध नि रैन्द दिन रात की..
कन छुयाल ह्वै तु बकि बात कि, बकि बात कि…..
कन छुयाल ह्वै तु बकि बात कि, बकि बात कि…..

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