तुम्हारी नज़रों में हम ने देखा अजब सी चाहत झलक रही हैं
तुम्हारी नज़रों में हम ने देखा
अजब सी चाहत झलक रही हैं
तुम्हारे होठों की सुर्खियों से \- २
वफ़ा की शबनम झलक रही हैं
तुम्हारी नज़रों ...
अजब सी ...
हमारी सांसों को छू के देखो
तुम्हारी खुशबू महक रही है
क़सम खुदा की यक़ीं करलो
कहीं भी ना होगा हुस्न ऐसा
न देखो ऐसे झुका के पलकें \- २
हमारी नीयत बहक रही हैं
तुम्हारी नज़रों ...
अजब सी ...
तुम्हारी उल्फ़त में जानेजाना
हमें मिली थी जो एक धड़कन
हमारे सीने में आज तक वो \- २
तुम्हारी धड़कन धड़क रही हैं
तुम्हारी नज़रों ...
अजब सी ...
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें