ग़रीबी की रेखा

कविता


घास काटकर नहर के पास, 
कुछ उदास-उदास सा
चला जा रहा था
गरीबदास। 
कि क्या हुआ अनायास...

दिखाई दिए सामने
दो मुस्टंडे,
जो अमीरों के लिए शरीफ़ थे
पर ग़रीबों के लिए गुंडे। 
उनके हाथों में
तेल पिए हुए डंडे थे, 
और खोपड़ियों में
हज़ारों हथकण्डे थे।
बोले-

ओ गरीबदास सुन !
अच्छा मुहूरत है
अच्छा सगुन। 
हम तेरे दलिद्दर मिटाएंगे, 
ग़रीबी की रेखा से
ऊपर उठाएंगे। 
गरीबदास डर गया बिचारा, 
उसने मन में विचारा-
इन्होंने गांव की
कितनी ही लड़कियां उठा दीं। 
कितने ही लोग 
ज़िंदगी से उठा दिए
अब मुझे उठाने वाले हैं,
आज तो
भगवान ही रखवाले हैं। 

-हां भई गरीबदास
चुप क्यों है ?
देख मामला यों है 
कि हम तुझे 
ग़रीबी की रेखा से
ऊपर उठाएंगे, 
रेखा नीचे रह जाएगी
तुझे ऊपर ले जाएंगे। 

गरीबदास ने पूछा-
कित्ता ऊपर ?

-एक बित्ता ऊपर
पर घबराता क्यों है
ये तो ख़ुशी की बात है, 
वरना क्या तू
और क्या तेरी औक़ात है ?
जानता है ग़रीबी की रेखा ?
-हजूर हमने तो 
कभी नहीं देखा। 

-हं हं, पगले, 
घास पहले
नीचे रख ले।
गरीबदास !
तू आदमी मज़े का है, 
देख सामने देख
वो ग़रीबी की रेखा है।

-कहां है हजूर ?

-वो कहां है हजूर ?
-वो देख, 
सामने बहुत दूर।

-सामने तो
बंजर धरती है बेहिसाब, 
यहां तो कोई 
हेमामालिनी
या रेखा नईं है साब।
-वाह भई वाह,
सुभानल्लाह।
गरीबदास 
तू बंदा शौकीन है, 
और पसंद भी तेरी 
बड़ी नमकीन है। 
हेमामालिनी 
और रेखा को
जानता है
ग़रीबी की रेखा को
नहीं जानता, 
भई, मैं नहीं मानता। 

-सच्ची मेरे उस्तादो !
मैं नईं जानता
आपई बता दो।
-अच्छा सामने देख
आसमान दिखता है ?

-दिखता है।

-धरती दिखती है ?

-ये दोनों जहां मिलते हैं
वो लाइन दिखती है ?
-दिखती है साब 
इसे तो बहुत बार देखा है। 

-बस गरीबदास 
यही ग़रीबी की रेखा है। 
सात जनम बीत जाएंगे
तू दौड़ता जाएगा, 
दौड़ता जाएगा, 
लेकिन वहां तक
कभी नहीं पहुंच पाएगा। 
और जब
पहुंच ही नहीं पाएगा 
तो उठ कैसे पाएगा ?
जहां है
वहीं-का-वहीं रह जाएगा। 

लेकिन 
तू अपना बच्चा है, 
और मुहूरत भी
अच्छा है !
आधे से थोड़ा ज्यादा 
कमीशन लेंगे
और तुझे
ग़रीबी की रेखा से
ऊपर उठा देंगे। 

ग़रीबदास ! 
क्षितिज का ये नज़ारा
हट सकता है
पर क्षितिज की रेखा
नहीं हट सकती, 
हमारे देश में
रेखा की ग़रीबी तो 
मिट सकती है, 
पर ग़रीबी की रेखा
नहीं मिट सकती। 
तू अभी तक
इस बात से 
आंखें मींचे है, 
कि रेखा तेरे ऊपर है
और तू उसके नीचे है।
हम इसका उल्टा कर देंगे
तू ज़िंदगी के 
लुफ्त उठाएगा, 
रेखा नीचे होगी
तू रेखा से
ऊपर आ जाएगा। 

गरीब भोला तो था ही
थोड़ा और भोला बन के, 
बोला सहम के-
क्या गरीबी की रेखा
हमारे जमींदार साब के
चबूतरे जित्ती ऊंची होती है ?

-हां, क्यों नहीं बेटा। 
ज़मींदार का चबूतरा तो 
तेरा बाप की बपौती है
अबे इतनी ऊंची नहीं होती 
रेखा ग़रीबी की, 
वो तो समझ 
सिर्फ़ इतनी ऊंची है
जितनी ऊंची है
पैर की एड़ी तेरी बीवी की। 
जितना ऊंचा है
तेरी भैंस का खूंटा, 
या जितना ऊंचा होता है 
खेत में ठूंठा, 
जितनी ऊंची होती है 
परात में पिट्ठी,
या जितनी ऊंची होती है
तसले में मिट्टी 
बस इतनी ही ऊंची होती है
ग़रीबी की रेखा, 
पर इतना भी
ज़रा उठ के दिखा !

कूदेगा
पर धम्म से गिर जाएगा
एक सैकिण्ड भी 
ग़रीबी की रेखा से
ऊपर नहीं रह पाएगा।
लेकिन हम तुझे
पूरे एक महीने के लिए 
उठा देंगे, 
खूंटे की 
ऊंचाई पे बिठा देंगे।
बाद में कहेगा
अहा क्या सुख भोगा...।

गरीबदास बोला-
लेकिन करना क्या होगा ?
-बताते हैं
बताते हैं, 
अभी असली मुद्दे पर आते हैं।
पहले बता
क्यों लाया है
ये घास ?

-हजूर, 
एक भैंस है हमारे पास।
तेरी अपनी कमाई की है ?

नईं हजूर !
जोरू के भाई की है।

सीधे क्यों नहीं बोलता कि 
साले की है, 
मतलब ये कि 
तेरे ही कसाले की है।
अच्छा,
उसका एक कान ले आ 
काट के, 
पैसे मिलेंगे
तो मौज करेंगे बांट के।
भैंस के कान से पैसे, 
हजूर ऐसा कैसे ?

ये एक अलग कहानी है, 
तुझे क्या बतानी है ! 
आई.आर.डी.पी. का लोन मिलता है
उससे तो भैंस को
ख़रीदा हुआ दिखाएंगे
फिर कान काट के ले जाएंगे
और भैंस को मरा बताएंगे
बीमे की रकम ले आएंगे
आधा अधिकारी खाएंगे
आधे में से
कुछ हम पचाएंगे, 
बाक़ी से 
तुझे 
और तेरे साले को
ग़रीबी की रेखा से 
ऊपर उठाएंगे।

साला बोला-
जान दे दूंगा
पर कान ना देने का। 

क्यों ना देने का ?

-पहले तो वो 
काटने ई ना देगी
अड़ जाएगी, 
दूसरी बात ये कि 
कान कटने से 
मेरी भैंस की 
सो बिगड़ जाएगी। 
अच्छा, तो...
शो के चक्कर में
कान ना देगा, 
तो क्या अपनी भैंस को 
ब्यूटी कम्पीटीशन में
जापान भेजेगा ?
कौन से लड़के वाले आ रहे हैं
तेरी भैंस को देखने
कि शादी नहीं हो पाएगी ?
अरे भैंस तो 
तेरे घर में ही रहेगी
बाहर थोड़े ही जाएगी। 

और कौन सी 
कुंआरी है तेरी भैंस
कि मरा ही जा रहा है,
अबे कान मांगा है
मकान थोड़े ही मांगा है
जो घबरा रहा है। 
कान कटने से 
क्या दूध देना
बंद कर देगी, 
या सुनना बंद कर देगी ?
अरे ओ करम के छाते !
हज़ारों साल हो गए
भैंस के आगे बीन बजाते।
आज तक तो उसने
डिस्को नहीं दिखाया,
तेरी समझ में
आया कि नहीं आया ?
अरे कोई पर थोड़े ही 
काट रहे हैं
कि उड़ नहीं पाएगा परिन्दा,
सिर्फ़ कान काटेंगे
भैंस तेरी
ज्यों की त्यों ज़िंदा।

ख़ैर, 
जब गरीबदास ने
साले को 
कान के बारे में
कान में समझाया, 
और एक मुस्टंडे ने
तेल पिया डंडा दिखाया, 
तो साला मान गया,
और भैंस का 
एक कान गया। 

इसका हुआ अच्छा नतीजा, 
ग़रीबी की रेखा से
ऊपर आ गए
साले और जीजा।
चार हज़ार में से
चार सौ पा गए, 
मज़े आ गए। 

एक-एक धोती का जोड़ा
दाल आटा थोड़ा-थोड़ा
एक एक गुड़ की भेली
और एक एक बनियान ले ली। 

बचे-खुचे रुपयों की 
ताड़ी चढ़ा गए, 
और दसवें ही दिन
ग़रीबी की रेखा के
नीचे आ गए।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हे मेरी आंख्यूं का रतन बाला स्ये जादी, बाला स्ये जादी

लायुं छो भाग छांटी की देयुं छो वेकु अन्जोल्युन न

जय बद्री केदारनाथ गंगोत्री जय जय जमुनोत्री जय जय