इश्क में हम तुम्हे क्या बताये किस कदर चोट खाए हुवे है,

इश्क में हम तुम्हे क्या बताये किस कदर चोट खाए हुवे है,
मौत ने हम को मारा है और हम जिंदगी के सताए हुवे हैं ,
पहन कर शादी का जोड़ा उसने सिर्फ़ चूमा था मेरे कफ़न को,
बस उसी दिन से जन्नत की हूरें मुझको दूल्हा बनाये हुवे है,
सुर्ख आंखों में काजल लगा है मुख पे वादा सजाये हुवे है,
ऐसे आए है मय्यत पे मेरी जैसे शादी में आए हुवे है,
ऐ लहद अपनी मट्टी से कहदे दाग लगने नपाये कफ़न को आज ही हमने बदले है 
कपड़े आज ही हम नहाए हुवे हैं,बिखरी जुल्फें परेशान चेहरा अश्क आँखों में आए हुवे है, 
ए काजल ठहर जा चंद लम्हे वोह इबादत को आए हुवे है,
दफ़न के वक्त सब दोस्तों ने यह चुकाया मोहब्बत का बदला, 
फैक दी ख़ाक मेरे बदन पर यह न सोंचा नहाय हुवे है,
उनकी तारीफ़ क्या पूछते हो उम्र सारी गुनाहों में गुजरी ऐसे, 
मासूमियत से है बैठे ऐसे जैसे की गंगा में नहाए हुवे है,
जिंदगी में न रास आई राहत चैन से अब सोने दो कफ़न में, 
ए फरिश्तो तुम तो न मारो हम तो इस जहाँ के सताए हुवे है,
खोयी खोयी सी बेचैन आँखे बेक़रारी है चेहरे पे छाई, छोड़ दो देना झूठी तसल्ली इश्क की चोट खाए हुवे है .......

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