कर्मभूमि बणावा "जल्मभूमि थैं
"जल्मभूमि थैं कर्मभूमि बणावा "
नि
जाओ भुलाओ,
रुकि जाओ दिदाओ ,
अपणा
ये पहाड़ मा , अपणा ये गढ़वाल मा,
जल्मभूमि
थैं, कर्मभूमि बणावा,
यखी
रावा पहाड़ मा,
थमी जावा गढ़वाल मा.
नि
जाओ भुलाओ.....
ऐंच
गोमुख़ छाली गँगा माँ की धार,
तुम
थैं आशिष देंदु बद्री-केदार,
देवि
-देवतों का गों-गाऊँ माँ बन्या थान,
देव
भूमि
या जुग्जुगोँ बिट्टी महान.
नि
जाओ भुलाओ.....
डांडू
मा खिल्दा फूल,
पुन्ग्दों मा नाज,
रौल्युं
मा बजदी घंडुलि, सग्वाडू कु
साग,
देस
की रक्षा मा गयाँ बीर जवान,
भारत
माँ की साख्युं बिट्टी रैनी सान.
नि
जाओ भुलाओ.....
घासू
गईं घस्येनी और पाणी की पांदेनी,
बाटु
देखणी दीदी-भुली लख़ड्वेनी,
नौन्यालु
कु लाड़, ब्वेइ-बबों की आस,
बौडी
ऐजा तु घौर सौंजड़य़ा उदास.
नि
जाओ भुलाओ.....
रंची
द्यो इतिहास नयु आज ये पहाड़ मा,
धन
-धन हवे जै जु मनखी एकि ये गढ़वाल मा,
भगीरथ
बनि विकासे की गंगा ल्येकि आवा,
छवटा-म्वटा
उद्योग लगै की रोजगार बढ़ावा.
नि
जाओ भुलाओ.....
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