रीधी कु सुमिरो,सीधी कु सुमिरो,सुमिरो सारदा माई,


गीत
रीधी कु सुमिरो,सीधी कु सुमिरो,सुमिरो सारदा माई,
अर् सुमिरो गुरु अभिनासी को,सुमिरो किशन कनाई!
सदा अमर या धरती नि रैन्दि,मेघ पड़े शुखी जाई,
अमर नि रैंदा,चन्द्र सूरज चुचा,गर्हण लगे छुपी जाई!
माता रोये जनम-जनम को,बहिन रोये छै मासा,
तिरिया रोये डेड घडी को,आन करे घर वासा!
ना घर तेरा न घर मेरा,चिडिया रैन बसेरा,
अस्ति घोड़ा कुटुंब कबीला रै चला-चली का फेरा!
रीधी कु सुमिरो सीधी कु सुमिरो,सुमिरो सारदा माई ,
सुन ले बेटा गोपीचंद जी बात सुनों चितलाई,
झूटी तेरी माया ममता,मति कैसी भरमाई!
कागज पटरी सब कोई बांचे करम न बांचे कोई,
राज घरों को राज कुवंर चुचा करणी जोग रमाई !
रीधी कु सुमिरो सीधी कु सुमिरो सुमिरो सारदा माई.
अर् सुमिरो गुरु अभिनासी कु सुमिरो किशन कनाई !

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