कख लगाण छुईं, कैमा लगाण छुईं
कख लगाण छुईं, कैमा लगाण छुईं, ये पहाड़ की, कुमौं गढ़वाल की
भावार्थ : किसको सुनाऊं इस पहाड़ की दर्द भरी बातें, कैसे सुनाऊं मेरे कुमाऊं-गढ़वाल की दर्द भरी बातें। ये बातें हैं खाली मकानों की, सूखें बर्तनों की, सरकते (पलायन करते हुए) हुए लोगों की और दरकते (टूटते) हुए पहाड़ों की। आकाश की है आस, कब बुझेगी धरती की प्यास। यह है गंगा-यमुना का उदगम स्थल लेकिन मनुष्यों और जानवरों के पीने के लिये नहीं है जल। क्या गर्मी, क्या हिमपात, पानी की बूंद भी नहीं है साथ। सुनते हैं पानी लाने के लिये फिर से बनी है कोई योजना, देखते हैं इस बार कैसे चलेगी यह योजना। आदमी को ले डूबी है शराब, बच्चे कुसंगत में हैं खराब। महिलायें चला रही हैं आन्दोलन दफ्तरों बाजारों में लेकिन कच्ची पक्की शराब की दुकानें खुली हैं हर धारों में। यह सब उनकी (सरकार की) मेहरबानी है, छीन ली जिसने जवानी है। खाली मकानों में बढ़ रही हैं छिपकलियां टूट रहे मकान ठेस में, चूहे-बिल्ली घर में बसते, लोग बसे हैं देश में (मैदानी इलाकों में)। कहीं नहीं हैं चैन, ना भीतर ना बाहर , दिन में बाघ और रात को भूचाल का है डर। जंगल खेत उजड़े बाढ़ में, बन्दरों और जानवरों ने उजाड़ी फसलें, कर्ज लेकर भैंस खरीदी सूखे ने चौपट की सारी नस्लें। किसको सुनाऊं इस पहाड़ की दर्द भरी बातें, कैसे सुनाऊं मेरे कुमाऊं-गढ़वाल की दर्द भरी बातें।
गीत
कख लगाण छुईं, कैमा लगाण छुईं, ये पहाड़ की, कुमौं गढ़वाल की
कख लगाण छुईं, कैमा लगाण छुईं
रीता कूड़ों की, तीसा भांडों की, रीता कूड़ों की, तीसा भांडों की
बगदा मनख्यूं की, रड़दा डांड़ों की
कख लगाण छुईं, कैमा लगाण छुईं, ये पहाड़ की, कुमौं गढ़वाल की
कख लगान छुईं, कैमा लगाण छुईं
सर्ग तेरि आशा, कब आलु चौमांसा, सर्ग तेरि आशा, कब आलु चौमांसा
गंगा जमुना जी का मुल्क, मनखि गोरु प्यासा
कख लगाण छुईं……..
क्या रूड़ि क्या ह्यूंद, पाणी नी छ बूंद, क्या रूड़ि क्या ह्यूंद, पाणी नी छ बूंद
फिर बणि छ योजना बल देखा आब क्या हूंद
कख लगाण छुईं..
रीता कूड़ों की, तीसा भांडों की, रीता कूड़ों की, तीसा भांडों की
बगदा मनख्यूं की, रड़दा डांड़ों की…………..
कख लगाण छुईं, कैमा लगाण छुईं, ये पहाड़ की, कुमौं गढ़वाल की
कख लगाण छुईं, कैमा लगाण छुईं?
बैग डुब्या दारु मां, नौना टुन्न यारुं मां, बैग डुब्या दारु मां, नौना टुन्न यारुं मां
कजैनि आन्दोलन चलाणि दफ्तरे बजारु मां
कख लगाण छुईं…
कच्चि गदन्या छान्यूं मां, पक्कि खुलि दुकान्युं मां, कच्चि गदन्या छान्यूं मां, पक्कि खुलि दुकान्युं मां
दारु का उद्योग खुल्या, उंकी मेहरबान्यूं मां..
कख लगाण छुईं…
रीता कूड़ों की, तीसा भांडों की,रीता कूड़ों की, तीसा भांडों की
बगदा मनख्यूं की, रड़दा डांड़ों की…………..
कख लगाण छुईं, कैमा लगाण छुईं, ये पहाड़ की, कुमौं गढ़वाल की
कख लगाण छुईं, कैमा लगाण छुईं
कुड़ि टुटनि ठेस मां, छिपड़्या लाग्या रेस मां, कुड़ि टुटनि ठेस मां, छिपड़्या लाग्या रेस मां
भितर मुसा बिराला बस्यां, मनखि भ्यार देस मां
कख लगाण छुईं…
ना भितर ना भैर, कखि भी नी च खैर,ना भितर ना भैर, कखि भी नी च खैर
दिन मां गिज्यु बाग- रात भ्युंचाला कि डैर
कख लगाण छुईं…
रीता कूड़ों की, तीसा भांडों की, रीता कूड़ों की, तीसा भांडों की
बगदा मनख्यूं की, रड़दा डांड़ों की…………..
कख लगाण छुईं, कैमा लगाण छुईं
ये पहाड़ की, कुमौं गढ़वाल की , कख लगाण छुईं, कैमा लगाण छुईं
जंगल खेर बाड़ मां, खेति बाड़ि त्याड़ मां, जंगल खेर बाड़ मां, खेति बाड़ि त्याड़ मां
सारि खायी बन्दरून, सगौड़ी गै उज्याड़ मां
कख लगाण छुईं…
कर्ज गाड़ि पैंचुं, फैलूं मां अल्जि भैंसुं, कर्ज गाड़ि पैंचुं, फैलूं मां अल्जि भैंसुं
गोरु डुब्यां बाड़ मां, सुखु पड़्युं ऐंसु
कख लगाण छुईं…
रीता कूड़ों की, तीसा भांडों की, रीता कूड़ों की, तीसा भांडों की
बगदा मनख्यूं की, रड़दा डांड़ों की…………..
कख लगाण छुईं, कैमा लगाण छुईं, ये पहाड़ की, कुमौं गढ़वाल की
कख लगाण छुईं, कैमा लगाण छुईं, कख लगाण छुईं, कैमा लगाण छुईं

टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें