मैं नि करदु त्वैं से ते बात, बोल चिट्ठी किले नि भैजि
मैं नि करदु त्वैं से ते बात, बोल चिट्ठी किले नि भैजी
भावार्थ : प्रेमिका अपने प्रेमी के आने पर उससे नाराजगी भरे स्वर में कहती है। मैं तुमसे बात नहीं करती हटो मेरा हाथ छोड़ दो। यह बताओ तुमने मुझे चिट्ठी क्यों नहीं भेजी? प्रेमी उसे मनाने वाले अंदाज में कहता है। अरे सुनो नाराज तो मत हो, मेरी बात सुनो, मैं तुम्हे हाथ जोड़ता हूँ अरे मैने बदनामी के डर से तुम्हें चिट्ठी नहीं भेजी।
प्रेमिका कहती है तुम सामने आने पर तो खूब नाटक करते हो दूर जाकर शायद मुझे याद भी नहीं करते। दिन – रात रोते हुए मेरी आंखो से सावन-भादों की बरसात की तरह आँसू बहते हैं।बताओ तुमने चिट्ठी क्यों नहीं भेजी ?
प्रेमी अपने बचाव में कहता है, जरा सोचो! अगर तुम्हारे गांव का डाकिया मेरी चिट्ठी लेकर तुम्हारे गांव आता, तुम तो जंगल में गई होती वो किसी और के हाथ में मेरी चिट्ठी दे देता(और हमारे प्यार के बारे में सब लोग जान जाते)। मैने अपने दिमाग पर जोर देकर यह बात सोची और बदनामी के डर से चिट्ठी नहीं भेजी।
प्रेमिका कहती है तुम निर्दयी हो और तुम्हारे प्राण निष्ठुर हैं। तुम जैसे निर्दयी से भला क्या दिल लगाना? तुम मर्दों की तो बात ही झूठी है, तुमसे भला कोई कैसे साथ निभाये। बताओ भला तुमने चिट्ठी क्यों नहीं भेजी ?
मेरे सच्चे प्यार पर शक मत करो, हे प्यारी तुम्हारी कसम तुम तो मेरी आंखों में बसती हो। मैं जल्दी ही तुम्हारे घर बारात लेकर आने वाला हूँ, फिर तो हमारा जीवन भर का साथ हो जायेगा। सच कहता हूँ यही सोचकर मैंने तुम्हें चिट्ठी नहीं भेजी।
मैं नि करदु त्वैं से ते बात, हट छोड़ि दे मेरु हाथ मैं नि करदु त्वैं से ते बात, छोड़ छोड़ि दे मेरु हाथ
बोल चिट्ठी किले नि भैजि त्विन चिट्ठी किले नि भैजि
त्वैं कुथैं जोड़्यान हाथ – सूण सुणिजा मेरि बात ,त्वैं कुथैं जोड़्यान हाथ – सूण सुणिजा मेरि बात
बदनामि की डोरो नि भैजि बदनामि की डोरो नि भैजि
मुख सामणि त खूब स्वांग भरदि, परदेस जै कि याद भी नि करदि,मुख सामणि त खूब स्वांग भरदि, परदेस जै कि याद भी नि करदि
रुंदु – रुंदु रो दीन – रात , सौंण – भादु सी बरसात, रुंदु – रुंदु रो दीन – रात , सौंण – भादु सी बरसात
बोल चिट्ठी किले नि भेजि बोल चिट्ठी किले नि भेजि
त्वैं कुथैं जोड़्यान हाथ – सूण सुणिजा मेरि बात बदनामि की डोरो नि भैजि
तेरा गौं कु डाक्वानु चिट्टी देणु आन्दु , तु रेन्दी बणूंमां वो कैमां दे जान्दु , तेरा गौं कु डाक्वानु चिट्टी देणु आन्दु , तु रेन्दी बणूंमां वो कैमां दे जान्दु
मुण्ड मां धेरि की जो हाथ, सोचि – सोचि मिन यो बात, मुण्ड मां धेरि की जो हाथ , सोचि – सोचि मिन यो बात
बदनामि की डोर नि भैजि, बदनामि की डोर नि भैजि
मैं नि करदु त्वैं से ते बात, छोड़ छोड़ि दे मेरु हाथ,बोल चिट्ठी किले नि भैजि
निगुरो सरैंल त्यारु निठुर पराण, हे निर्दयी त्वैं मां क्या माया लांण, निगुरो सरैंल त्यारु निठुर पराण, हे निर्दयी त्वैं मां क्या माया लांण
झूठी मर्दों की छ जात , कन क्वै कि निभैन साथ, झूठी मर्दों की छ जात, कन क्वै कि निभैन साथ
बोल चिट्ठी किले नि भेजि त्विन चिट्ठी किले नि भेजि
त्वैं कुथैं जोड़्यान हाथ – सूण सुणिजा मेरि बात, बदनामि की डोरो नि भैजि
मेरि सांचि माया मां सक कैकु खांदि, हे चुचि त्यारा सौं तु मेरि आंख्यूं मां रान्दि,मेरि सांचि माया मां सक कैकु खांदि, हे चुचि त्यारा सौं तु मेरि आंख्यूं मां रान्दि
लैकि आणुं छो बरात, अब त उमर भर कु साथ,लैकि आणुं छो बरात, अब त उमर भर कु साथ
मैंन चिट्ठी इलैं नि भैजि – मैंन चिट्ठी इलैं नि भैजि – मैंन चिट्ठी इलैं नि भैजि
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